विगत कुछ माहों से छप रहे समाचारों के अनुसार उदयपुर शहर के मलितजल (सीवेज) को उपचारित करने के लिये एक मलितजल उपचारण सयंत्र (Sewage Treatment Plant – STP) शहर के दक्षिण-पूर्व में स्थित मनवाखेड़ा के पास स्थापित करने के लिये एक करार, नगर परिषद्, नगर विकास प्रन्यास व हिंदुस्तान ज़िक लिमिटेड के बीच करने की सहमति राज्य सरकार ने दी है। इसके अनुसार हिंदुस्तान ज़िक लिमिटेड आंशिक आर्थिक सहयोग करते हुए प्लांट का निर्माण व रखरखाव करेगा और नगर से मनवाखेड़ा तक की पाइप लाइन बिछाने व पंप आदि लगाने का काम प्रन्यास या परिषद् के ज़िम्मे होगा। लेकिन अगर इन समाचारों को ध्यान से पढ़ें और मनन करें तो पता लगता है कि हिंदुस्तान ज़िंक कंपनी यह करार एक बड़े दीर्घकालीन निजी हित की पूर्ती के लिये बहुत व्यापारिक आधार पर लागत लाभ का पूरा पूरा ध्यान रखते हुए कर रही है जिसे समाजसेवा का नाम एक सोची समझी नीति के अनुसार दिया जा रहा है।
प्रकाशित समाचारों के अनुसार इस सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की जल उपचारण क्षमता 2 करोड़ लिटर प्रतिदिन (20 एमएलडी) की होगी और हिंदुस्तान ज़िंक कंपनी अपने निवेश के बदले इस उपचारित जल को करार की अवधि तक निशुल्क काम में ले सकेगी। प्रतिदिन 2 करोड़ लिटर पानी का अर्थ 73 लाख घनमीटर या 258 एमसीएफ़टी प्रति वर्ष होता है। यह एक उल्लेखनीय मात्रा है जो आधे से अधिक फतहसागर (जल संग्रह क्षमता – 427 एमसीएफ़टी) के बराबर है और आयड़ नदी के उदयसागर तक के केचमेंट की जल आवक व खपत के लेखे में भारी प्रभाव डालने वाली है।
इस ट्रीटमेंट प्लांट की योजना सन् 2008 से चर्चा में है। राजस्थान पत्रिका के दिनांक 16 सितम्बर 2008 के अंक में छपे एक समाचार के अनुसार तब इस योजना की कुल अनुमानित लागत 220 करोड़ रुपये थी जिसमें ट्रीटमेंट प्लांट के साथ ही भूमि अधिग्रहण, पाइप लाइनों, पंपों आदि की लागत भी सम्मिलित थी। उस समय इस योजना को क्रियान्वित करने का जिम्मा आरयूआइडीपी, जयपुर का था जिसने ट्रीटमेंट प्लांट स्थापना के लिये निविदाएं भी जारी कर दी थीं। तब यह काम क्यों रुका और क्रियान्वन एजेंसी क्यों व कब बदली इसकी जानकारी नहीं है लेकिन 18 अगस्त 2010 को छपे एक समाचार के अनुसार हिंदुस्तान ज़िंक कंपनी इस योजना से 25 करोड़ रुपये खर्च करने के प्रस्ताव के साथ जुड़ चुकी थी और नगर विकास प्रन्यास ने हाथीपोल से मनवाखेड़ा तक पाइप लाइन बिछाने के लिये निविदाएं जारी कर दी थीं। इन निविदाओं का क्या हश्र हुआ, यह जानकारी नहीं है। लेकिन यह स्पष्ट है कि आज तीन साल बाद श्रम व सामग्री लागत में हुई वृद्धि को देखते हुए इस संपूर्ण योजना की अनुमानित लागत कम से कम 250 करोड़ रुपये होगी।
हिंदुस्तान ज़िंक कंपनी ने प्रारंभ में इस योजना के ट्रीटमेंट प्लांट के लिये 25 करोड़ रुपये की राशि का आर्थिक सहयोग करने का प्रस्ताव दिया था और इसका निर्माण अपने स्टाफ से कराने की मंशा जताई थी। इसके बाद विभिन्न स्तरों पर हुई वार्ताओं में हिंदुस्तान ज़िंक कंपनी ने पाइप लाइन निर्माण, संचालन, रख-रखाव, सामाजिक गतिविधियों को जोड़ते हुए अपनी सहयोग राशि को 170 करोड़ रुपये किया जाना बताया है लेकिन इसमें मूल ट्रीटमेंट प्लांट के लिये 25 करोड़ रुपये की ही राशि यथावत है। समाचारों में यह भी दर्शाया गया है कि 20 वर्ष की अवधि के लिये उपचारित को यदि मुफ्त न दे कर आज की दरों पर दिया जावे तो सरकार को 187.32 करोड़ रुपये की आय हो सकती है। इस प्रकार हिंदुस्तान ज़िंक कंपनी का कुल निवेश उपचारित पानी के मूल्य से कम है। यह लाभकारी स्थिति होते हुए भी उपचारित पानी को कंपनी को मुफ्त में देने की अवधि 20 के बजाय 25 वर्ष की जा रही है ऐसी जानकारी राजस्थान पत्रिका के 28 अक्टूबर 2011 के अंक में प्रकाशित समाचार से होती है। यदि ऐसा होता है तो हिंदुस्तान ज़िंक कंपनी 170 करोड़ रुपयों का निवेश कर 234.15 करोड़ रुपये मूल्य का उपचारित पानी लेगी।
राजस्थान में लागू जल दरों में कई सालों से संशोधन नहीं हुआ है जबकि महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ आदि में जल दरों में ख़ासी वृद्धि की जा चुकी है और हर तीन साल में दरों में संशोधन के लिये नियामक आयोग बना दिये हैं। ऊपर जो गणनाएं हैं वे वर्तमान दरों के आधार पर हैं और अगर हर तीन साल में संभावित संशोधन को भी ध्यान में रखा जावे तो स्थिति दूसरी ही हो जायगी।
वर्तमान में उदयपुर नगर का मलित जल स्थान स्थान पर आयड़ नदी में गिरता है जो या तो भू-जल का पुनर्भरण करता है या बहते बहते उदयसागर में जाता है। प्रस्तावित करार के अनुसार हिंदुस्तान ज़िंक कंपनी उपचारित पानी के अपने संयत्रों में काम में लेगी। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कंपनी के ज़ावर क्षेत्र के लिये टिड़ी बाँध से व देबारी क्षेत्र के लिये उदयसागर एवं मान्सी-वाकल बाँध से पर्याप्त मात्रा में पानी काम में लेने के करार पहले से हैं इसलिये यह स्पष्ट है कि कंपनी की योजना प्रस्तावित करार के अंतर्गत मिलने वाले पानी को रामपुरा अगूचा क्षेत्र में ले जाने की है जो आयड़ नदी के मूल केचमेंट क्षेत्र से बाहर है। इस तरह इन प्रस्तावों से उदयसागर में होने वाली जल आवक या इस के ऊपर के क्षेत्र में होने वाले भू जल पुनर्भरण में हर साल 258 एमसीएफ़टी पानी की कटौती हो जायगी। इतने पानी से लगभग 2000 एकड़ क्षेत्र में गेहूँ की फ़सल की सिंचाई हो सकती है और 20,000 क्विंटल अन्नोत्पादन हो सकता है जिसका मूल्य 1500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से तीन करोड़ रुपये होता है। इस तरह उपचारित पानी का अन्यत्र उपयोग होने के परिणामस्वरूप हर साल 20,000 क्विंटल अन्न उत्पादन नहीं हो सकेगा। इस क्षेत्र में एक कृषक परिवार के पास औसत 0.75 एकड़ कृषी भूमि है सो लगभग 3000 कृषक परिवारों की आजीविका पर इस योजना का विपरीत प्रभाव पड़ने का अनुमान है।
समाचार पत्रों में प्रकाशित लेखों में इसे अनूठी व अनुकरणीय पहल बताया है व ऐसा आभास होता है कि हिंदुस्तान ज़िंक लिमिटेड पर्यावरण सुधार के लिये उल्लेखनीय सहयोग करते हुए अपना सामाजिक दायित्व निभा रहा है और इस पहल से सरकारी खर्चे में भारी बचत होगी। लेकिन उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि तथ्यात्मक स्थिति ऐसी नहीं है।
यह सही है कि इस अनुपचारित जल के कारण आयड़ नदी और उदयसागर में प्रदूषण का स्तर गंभीर है जिसमें सुधार समुचित उपचार व्यवस्था से ही संभव है। लेकिन इस आवश्यकता की पूर्ति के लिये कुछ निश्चित राशि व निर्माण सहयोग कोई निजी कंपनी दे और वर्षों तक उपचारित पानी मुफ़्त में ले तो ऐसे प्रस्ताव पर कोई निर्णय लेने से पहले समग्र रूप से गंभीर विचार व मंथन किया जाना जनहित में वांछित है। ऐसे किसी मंथन के लिये निम्न बिंदुओं पर ध्यान देना जनहित में आवश्यक है –
· क्या सरकार ने मलित जलोपचार (Sewage Treatment) के राजकीय दायित्व को किसी निजी कंपनी की भागीदारी से निभाने के आधार तथा प्रक्रिया संबंधी कोई सुविचारित नीति या दिशा निर्देश जारी किये हैं जिससे इस करार की वैधता सुनिश्चित हो?
· क्या इस भागीदारी के लिये समान शर्ते रखते हुए सभी इच्छुक कंपनियों को मौका देने के लिये कोई प्रस्ताव व्यापक प्रचार प्रसार के साथ माँगे गए और उनमें हिंदुस्तान ज़िंक लिमिटेड कंपनी का प्रस्ताव सर्वोत्तम होने से इस कंपनी का चयन किया गया है या पहल केवल इस कंपनी की ओर से ही हुई है और विभिन्न बैठकों के माध्यम से कंपनी अपने निवेश को 25 करोड़ से बढ़ाते हुए 170 करोड़ रुपये करने के लिये सहमत हुई है? प्रस्तावित निवेश में धीरे धीरे वृद्धि की सहमति और साथ के साथ मुफ़्त पानी काम में लेने की अवधि बढ़ाते जाना क्या कंपनी की सौदेबाज़ी की एक सोची समझी रणनीति नहीं है और क्या इससे ऐसा नहीं लगता कि कंपनी के निवेश में और वृद्धि की संभावना है?
· कंपनी की ओर से कुल 170 करोड़ के निवेश में मूल निर्माण लागत पेटे तो केवल 25 करोड़ रुपयों की निश्चित राशि का निवेश किया जा रहा है, शेष संचालन व रख-रखाव पर होने वाला व्यय है जो भविष्य की परिस्थितियों पर निर्भर है और हर हाल में होना है। क्या 250 करोड़ रुपयों की मूल निर्माण लागत वाली योजना में मात्र 25 करोड़ रुपयों के निवेश की ख़ातिर आगामी 20-25 सालों के लिये एक निजी कंपनी को 2 करोड़ लिटर पानी प्रतिदिन निशुल्क देने की बाध्यता उचित है? क्या विकल्प के तौर पर सरकार ही सारी राशि का निवेश करे और संचालन व रख-रखाव चाहे ठेके पर चाहे स्वयं अपने खर्च से करे और उपचारित पानी के उपयोग-क्षेत्र (कृषी अथवा उद्योग) व इसकी दर का निर्धारण समय समय की परिस्थिति और बाज़ार मूल्य के आधार पर करने की नीति नहीं अपना सकती है?
· क्या यह करार करने का निर्णय लेते समय 258 एमसीएफ़टी पानी के स्थानीय क्षेत्र में सिंचाई के बजाय औद्योगिक उपयोग होने के कारण लगभग 3000 कृषक परिवारों की आजीविका की वैकल्पिक व्यवस्था करने की आवश्यकता पर ध्यान दिया गया है?
· उदयपुर में अभी 48 घंटे में एक बार पानी दिया जा रहा है लेकिन शीघ्र ही देवास परियोजना पूरी होने पर प्रतिदिन पानी दिये जाने की संभावना है, जिससे मलित जल की मात्रा निश्चित रूप से बढेगी, क्या सरकार ने इस आधार पर कंपनी को मुफ्त में मिलने वाले अतिरिक्त जल का आँकलन किया है?