हमारे देश में मेट्रिक प्रणाली लागू है जिसके अनुसार लंबाई या ऊँचाई मीटर, सैंटीमीटर, मिलिमीटर आदि में ही दर्शाना अनिवार्य है और इसके लिये फुट या इंच आदि का उपयोग गैर कानूनी है व ऐसा पाए जाने पर सज़ा का प्रावधान है। लेकिन राजस्थान सरकार के अधिकांश विभाग और यहाँ के समाचार पत्र जाने क्यों बाँधों के जल स्तर, वर्षा आदि के आँकड़े फुटों या इंचों में दर्शा कर बाट और माप कानून 1976 का खुला उल्लंघन कर रहे हैं।
मेट्रिक प्रणाली अपनाने वाले देशों में भारत अग्रणी था और इस संबंध में पहला कानून लोकसभा ने दिसम्बर 1956 में पारित किया जो 1 अक्टूबर 1958 से देश में लागू हुआ। इसके अनुसार मेट्रिक प्रणाली का प्रचलन सुचारु होने तक पाँच साल तक ब्रिटिश गज, फुट, इंच की प्रणाली भी साथ साथ काम में लेने की छूट थी जो अक्टूबर 1963 में पूरी हो चुकी है। इस कानून का संशोधित रूप सन् 1976 में लागू हुआ और इसके प्रावधानों की पालना के लिये स्टैंडर्स ऑफ वेएट्स एंड मेज्य़र्स (एनफ़ोर्समेंट) एक्ट सन् 1985 में पारित हुआ। ये दोनों कानून आज भी लागू है।
1976 के संशोधित कानून के भाग – 2 अध्याय – 1 की धारा 4 (1) व (2) के अनुसार मेट्रिक प्रणाली के अलावा किसी भी इकाई को काम में लेना अपराध है। इसी अध्याय की धारा 13 (2) में यह प्रावधान है कि इकाइयों के भाग दर्शाने के लिये दशमलव प्रणाली ही काम में ली जावे। इस कानून के भाग – 6 ए की धारा 50 के अनुसार अन्य इकाई काम में लेने की सज़ा एक हज़ार रूपये जुर्माना या छः माह तक की कैद या दोनों है। अगर यही अपराध दुबारा करना पाया जावे तो दो साल तक की जेल हो सकती है।
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STANDARDS OF WEIGHTS AND MEASURES ACT – 1976
PART II – CHAPTER I – Standard units
4. (1) Every unit of weight or measures shall be based on the units of the metric system.
(2) For the purposes of sub-section (1),-
(a) the international system of units as recommended by the General Conference on Weights and Measures, and
(b) such additional units as may be recommended by the International Organisation of Legal Metrology, shall be the units of the metric system.
5. (1) The base unit of length shall be the metre.
13. (1) The base unit of numeration shall be the unit of the international form of Indian numerals.
(2) Every numeration shall be made in accordance with the decimal system.
PART VI - OFFENCES AND THEIR TRIAL
50. Whoever uses any weight or measure or makes any numeration otherwise than in accordance with the standards of weight or measure or the standards of numeration, as the case may be, established by or under this Act, shall be punished with imprisonment for a term which may extend to six months, or with fine which may extend to one thousand rupees, or with both, and, for the second or subsequent offence, with imprisonment for a term which may extend to two years and also with fine.
मेट्रिक प्रणाली में लंबाई या गहराई या जल स्तर नापने के लिये मीटर का प्रयोग होता है और दशमलव आधार पर मिलीमीटर, सेंटीमीटर, किलोमीटर आदि का प्रयोग आवश्यकतानुसार किया जाता है। इस प्रकार से दैनिक वर्षा, नदियों, नालों, बाँधों आदि के जल स्तर दर्शाने वाले आँकड़े मिलीमीटर या सैंटीमीटर में दर्शाये जाने चाहियें लेकिन धडल्ले से ये आँकड़े फुटों और इंचों में दर्शाये जा रहे हैं और सभी प्रमुख समाचार पत्र भी फुट और इंच की इकाई का प्रयोग अपने समाचारों में कर रहे हैं।
वर्षामापी बनाने वाली कंपनियाँ तो बाट एवं माप का कानून तोड़ने का सोच भी नहीं सकती हैं इसलिये सभी वर्षामापी यंत्रों में नाप मिलीमीटर में ही करना संभव है फिर ये इंचों के आँकड़े क्या परिवर्तन गुणांक लगा कर किये जा रहे हैं ? यदि ऐसा किया जा रहा है तो ये मेहनत किस तबके के लिये है? बच्चे तो स्कूल में केवल मेट्रिक प्रणाली ही सीख रहे हैं और जवानों ने भी मेट्रिक प्रणाली ही देखी है तो फिर 50 साल से अवैध घोषित ये फुट और इंच के नाप क्या 70 साल से अधिक की उम्र के नागरिकों की सुविधा के लिये हैं ? यदि ऐसा है तो बुज़ुर्गों को भी मेट्रिक प्रणाली की जानकारी अब तो ले ही लेनी चाहिये।
राजस्थान का जल संसाधन विभाग अभी भी अपने कई बाँधों, नदी नालों आदि पर जल स्तर नापने के लिये पुरानी फुटों वाली गेज पट्टी को ही यथावत रखते हुए कभी कभी उस पर नया रंग कर देता है और इस विभाग से संबंधित खबरों में अक्सर बाँधों की भराव क्षमता दर्शाने के लिये भी एमसीएफटी (Mcft – Million Cubic Feet) का प्रयोग किया जाता है जो उपरोक्त विवरण के आधार पर केन्द्रीय कानून का खुला उल्लंघन है। इसी तरह जल दाय विभाग भी पानी की आवश्यकता या पंप किये जाने वाले पानी की मात्रा जीपीडी (gpd – Gallons per day) के रूप में दर्शाता है जो अवैध है।
आशा है कि बाट और माप कानून की पालना करते हुए संबंधित विभाग और समाचार पत्र वर्षा, बाँधों के जल स्तर व जल की मात्रा दर्शाने के लिये केवल मेट्रिक प्रणाली का उपयोग ही करेंगे और इस कानून की पालना सुनिश्चित कराने वाला विभाग भी अपना कर्तव्य निबाहेगा।
नोट – यह लेख उदयपुर से प्रकाशित पाक्षिक पत्रिका “महावीर समता संदेश” के अगस्त 2006 के अंक के ‘ख़बरों की खोज ख़बर” स्तंभ पर आधारित है।