दुबई में नीम, पीपल और बरगद जैसे वृक्ष लगाने को प्राथमिकता दी जा रही है जबकि यहाँ भारत में हम आधुनिकता या फैशन के नाम पर खजूर के वृक्ष लगाने लगे हैं। नीम, पीपल और बरगद जैसे वृक्ष घने पत्तों वाले होते हैं और समय के साथ फैलते जाते हैं और इनसे भरपूर वाष्पोत्सर्जन (evapotranspiration) होता है जबकि खजूर के पत्तों की संख्या सीमित होती है और समय के साथ बढ़ती नहीं है जिससे वाष्पोत्सर्जन सीमित ही रहता है। हरियाली बढ़ने से हवा में नमी बढ़ती है और न्यूनतम व अधिकतम तापमान में अंतर घटता है जो जीवनयापन को सुखद बनाने में सहयोगी होता है। पूरा लेख आगे पढ़िये।
दुबई मध्य पूर्व में स्थित सात संयुक्त अरब अमीरातों में से एक है जिसका भौगोलिक क्षेत्र 4114 वर्ग किलोमीटर और आबादी 17.71 लाख (वर्ष 2009) है। इतना छोटा होते हुए भी यहाँ के विकास की स्थिति का उदाहरण यह है कि शहर का मुख्य मार्ग (शेख ज़ायद रोड) बारह लेन का है और यहाँ के विख्यात अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे का रन-वे 4 किलोमीटर लंबा है। यहाँ “बुर्ज़ खलीफ़ा” नामक 160 मंज़िले टॉवर का निर्माण अभी हाल ही में पूरा हुआ है जिसकी ऊँचाई 828 मीटर है। यह टॉवर वर्तमान में विश्व की सबसे ऊँची इमारत है जिसमें 3000 कारों की क्षमता की अंडरग्राउंड पार्किग व्यवस्था, 11 हेक्टर में पार्क व जलाशय, 37 मंज़िलों में ऑफिस, 4 मंजिलों में जिम व फिटनेस सैंटर, एक मंजिल में रेस्टोरेंट, एक मंज़िल में दर्शक दीर्घा व शेष मंज़िलों में 160 कमरों का एक होटल व विभिन्न श्रेणियों के आवासीय फ्लेट हैं। दुबई की 43 स्टेशनों वाली 53 किलोमीटर लंबी मेट्रो ट्रेन प्रणाली विश्व की सबसे लंबी स्वचालित (चालक रहित) डबल ट्रेक रेल प्रणाली है जिस पर अभी दोनों दिशाओं में हर पाँच मिनिट में ट्रेन चलती है और आवश्यकता होने पर हर 90 सैकंड में एक ट्रेन चलाई जा सकती है। इस मेट्रो ट्रेन में वर्तमान में 1,70,000 यात्री प्रतिदिन सफ़र करते हैं।
दुबई की औसत वार्षिक वर्षा केवल 88 मिलीमीटर (3.5″) होने के बावजूद यहाँ पानी की भरपूर व्यवस्था है । सन् 2011 में 23.8 और सन् 2010 में मात्र 23.8 व 37 मिलीमीटर वर्षा ही हुई थी फिर भी पानी की कोई कमी यहाँ के नागरिकों को नहीं हुई । यहाँ भयंकर गर्मी पड़ती है और अगस्त माह में अधिकतम तापमान 48 डिग्री सेंटीग्रेड तक हो जाता है। इतनी कठिन परिस्थिति और इतनी कम वर्षा होते हुए भी विलक्षण बात यह है कि यहाँ पर जगह जगह श्रेणीबद्ध कृतिम झीलें और फव्वारे हैं, बड़े बड़े पार्क हैं और सड़कों के मध्य में तथा किनारों पर हरियाली व फुलवारियाँ है । उल्लेखनीय यह है कि भारत के अच्छी वर्षा वाले शहरों की स्थिति को तो छोड़ें, राजस्थान राज्य के रेगिस्तान में स्थित जैसलमेर की औसत वार्षिक वर्षा भी 209 मिलीमीटर है जो दुबई से दुगुनी है।
इतनी कम वर्षा के कारण यहाँ न तो सतही जल है और न ही भू-जल है लेकिन समुद्र का लंबा किनारा है जिसके खारे पानी को विशाल अलवणीकरण केन्द्रों में उपचारित करके घरेलू और व्यावसायिक उपयोग के लिये जल की व्यवस्था की जाती है। वर्तमान में यहाँ सात अलवणीकरण केन्द्र संचालित हो रहे हैं जिनकी क्षमता 3.3 करोड़ गैलन (15 करोड़ लिटर) प्रतिदिन की है जबकि समग्र मांग 2.71 करोड़ गैलन (12.3 करोड़ लिटर) प्रतिदिन की ही है। वर्तमान क्षमता सन् 2015 तक के लिये पर्याप्त है लेकिन फिर भी आगे की आवश्यकता को देखते हुए अतिरिक्त जल शोघन केन्द्रों की स्थापना का काम जारी है। यहाँ शुद्ध पानी को संग्रहित करने के लिये 4.3 करोड़ गैलन (19.5 करोड़ लिटर) क्षमता के संग्रहण जलाशय बने हुए हैं जो दैनिक माँग का 130% है या यों कहें कि आपतकाल में यदि जल शुद्धिकरण प्लांट काम करना बंद कर दें तो भी 30 घंटों से अधिक समय की आवश्यकता की पूर्ती संग्रहित जल से की जा सकती है। वहाँ अभी यह विचार चल रहा है कि अतिरिक्त जल शोधन क्षमता का उपयोग भू जल स्तर को बढ़ाने के लिये किया जावे ताकि किसी संकट के समय इस पानी को पंप करके काम में लिया जा सके।
दुबई में प्रतिदिन 1.93 करोड़ गैलन (8.77 करोड़ लिटर) गंदे पानी को साफ़ कर पुन:चक्रित (recycle) किया जाता है जो सप्लाई का 71% है। गंदे पानी के पुन:उपयोग (reuse) की यह एक मिसाल है। इस पुन:चक्रित पानी से कृतिम झीलों को भरा रखा जाता है और पेड़ पौधों की सिंचाई की जाती है। सिंचाई के लिये स्वचालित ड्रिप इरिगेशन प्रणाली (automated drip irrigation system) काम में ली जाती है जिसकी दक्षता सामान्य सिंचाई प्रणाली से काफ़ी अधिक है और श्रमिकों पर आधारित भी नहीं रहना पड़ता है।
यहाँ सन् 2007 में 75.76 लाख वर्ग मीटर का हरित क्षेत्र था जो सन् 2009 में 89.43 लाख वर्ग मीटर (118%) और सन् 2011 में 97.86 लाख वर्ग मीटर (129%)हो गया । इसी प्रकार सन् 2007 में वृक्षों की संख्या 26.91 लाख थी जो सन् 2009 में 28.12 लाख (104%) व 2011 में 29.95 लाख (111%) हो गई । मात्र चार साल में इतनी वृद्धि वहाँ की व्यवस्था की प्रतिबद्धता दर्शाती है ।
पेड़ लगाते समय वहाँ नीम, पीपल और बरगद जैसे वृक्ष लगाने को प्राथमिकता दी जा रही है जबकि यहाँ हम आधुनिकता या फैशन के नाम पर खजूर के वृक्ष लगाने लगे हैं । नीम, पीपल और बरगद जैसे वृक्ष घने पत्तों वाले होते हैं और समय के साथ फैलते जाते हैं और इनसे भरपूर वाष्पोत्सर्जन (evapotranspiration) होता है जबकि खजूर के पत्तों की संख्या सीमित होती है और समय के साथ बढ़ती नहीं है जिससे वाष्पोत्सर्जन सीमित ही रहता है। हरियाली बढ़ने से हवा में नमी बढ़ती है और न्यूनतम व अधिकतम तापमान में अंतर घटता है जो जीवनयापन को सुखद बनाने में सहयोगी होता है।
इस नीति से दुबई का औसत अधिकतम व न्यूनतम तापमान में आया परिवर्तन निम्न तालिका से स्पष्ट होता है –
सन् |
औसत अधिकतम तापमान |
औसत न्यूनतम तापमान |
औसत अधिकतम व औसत न्यूनतम तापमान में अंतर |
सन् 2007 की तुलना में आई कमी |
2007 |
42.0 |
14.2 |
27.8 |
|
2009 |
41.4 |
14.5 |
26.9 |
3.23% |
2011 |
42.0 |
16.0 |
26.0 |
6.47% |
Source – Dubai Statistics Center, Government of Dubai (//www.dsc.gov.ae/EN/Themes/Pages/Reports.aspx?TopicId=16)
स्पष्ट है कि दुबई में मौसम का अनुकूलन हो रहा है जबकि भारत के अधिकांश भागों में घटती हरियाली व बढ़ते प्रदूषण के कारण अधिकतम तथा न्यूनतम तापमान में अंतर बढ़ रहा है। अतः आवश्यक यह है कि हम अपनी परम्परागत नीतियों को अपनाते हुए घने छायादार वृक्ष अधिक से अधिक संख्या में लगावें और खजूर जैसे वृक्षों को प्राथमिकता देना बंद करें।
– ज्ञान प्रकाश सोनी
इति शुभम्