राजस्थान में आज़ादी से पहले कई राजाओं ने मंदिरों के दिन प्रतिदिन के खर्च की स्वचालित व्यवस्था के लिये काफ़ी आबादी या कृषी योग्य भूमि के खातेदारी अधिकार संबंधित मंदिर के नाम किये थे और मंदिर की मूर्ति को नाबालिग घोषित किया था जिससे इसे बेचने या स्थानांतरित करने का अधिकार किसी को नहीं रहता था। विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के अनुसार राज्य में नाबालिग भगवान के नाम दर्ज ऐसी 18 लाख बीघा जमीनें लोगों द्वारा हड़पी जा चुकी है। अगर ऐसी भूमि की औसत दर केवल 10 लाख रूपये बीघा की मानें तो राज्य में ऐसी खुर्द बुर्द की गई 18 लाख बीघा जमीन की कीमत 1,80,000 करोड़ रूपये होती है जो एक तरह से ऐसे मेदिरों को आज़ादी के बाद संभालने के लिये जिम्मेदार देवस्थान विभाग, राजस्थान, की दरियादिली की कीमत है। पूरा लेख आगे पढ़िये।
आज़ादी के पहले के राज में विभिन्न मंदिरों को पूजा अर्चना के लिये आत्म निर्भर बनाए रखने के उद्देश्य से मंदिरों के साथ काफ़ी आबादी या कृषी योग्य भूमि के खातेदारी अधिकार संबंधित मंदिर के नाम कर दिये जाते थे और मंदिर की मूर्ति को नाबालिग माना जाता था जिससे इसे बेचने या स्थानांतरित करने का अधिकार नहीं रहता था। ऐसे कई मंदिर हैं जिनके खाते की ज़मीने उस समय तो इतनी मूल्यवान नहीं थीं लेकिन शहर के फैलाव के साथ मूल्यवान होती गईं। आज़ादी के बाद राजस्थान में विलीन हुई रियासतों के अधीन आने वाली ऐसी कई परिसंपत्तियाँ राज्य के बाहर के तीर्थस्थानों जैसे हरिद्वार, बनारस आदि में भी है जो आज बहुमूल्य हो चुकी हैं।
आज़ादी के बाद सार्वजनिक मंदिरों और इनकी परिसंपत्तियों की देखरेख के लिये देवस्थान विभाग का गठन किया गया लेकिन ये विभाग शुरू से ही दरियादिल रहा और विभिन्न मंदिरों की परिसंपत्तियाँ खुर्द बुर्द होती रहीं और इनसे जुड़ी ज़मीनें पुजारियों आदि की मिलीभगत से निजी लोगों के कब्जों में जाती रहीं। प्रदेश में कुछ सरकारें तो मंदिरों में पूजा अर्चना के सहारे चलीं लेकिन इनके कार्यकाल में भी ऐसी खुर्द बुर्द की गई परिसंपत्तियों को वापस सरकारी कब्ज़े में लेने के कोई प्रयास नहीं हुए।
विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के अनुसार राज्य में नाबालिग भगवान के नाम दर्ज ऐसी 18 लाख बीघा जमीनें लोगों द्वारा हड़पी जा चुकी है। उदयपुर कार्यालय के लिये ऐसे हड़पी गई जमीन का ऑंकड़ा 1143 हेक्टर यानि लगभग 7500 बीघा है। आज कल ज़मीनों के भाव आसमान छू रहे हैं और अगर औसत रूप से केवल 10 लाख रूपये बीघा की दर मानें तो राज्य में ऐसी खुर्द बुर्द की गई 18 लाख बीघा जमीन की कीमत 1,80,000 करोड़ रूपये होती है।
राजस्थान सरकार पर अब तक कुल कर्ज़ा लगभग 90,000 करोड़ रूपये है। यानि कि अगर सरकार ऐसी खुर्द बुर्द की गई जमीनो में से आधी की भी कीमत वसूल ले तो सरकार का सारा कर्ज़ा आसानी से समाप्त हो सकता है। इसी कड़ी में यह भी उल्लेखनीय है कि सरकार की वार्षिक विकास योजना लगभग 12,000 करोड़ रूपये की होती है तो अगर शेष आधी जमीनों की कीमत और वसूलने का लक्ष्य प्राप्त कर लिया जावे तो आठ साल के विकास कार्यों के बराबर विकास कार्य कराए जा सकते हैं।
यदि राजनीतिक पार्टियों में कोई एक पार्टी देवस्थान की ज़मीनों का कब्ज़ा वापस लेने या बाज़ार भाव से इसकी कीमत वसूलने का काम करने की नीति अपनाने की घोषणा अपने घोषणा पत्र में शामिल कर ले तो इसे निश्चित रूप से जनता का सहयोग मिलेगा।