(वॉटर हारवेस्टिंग पर मेवाड़ी भाषा में एक विचारोत्तेजक लेख)
आजकालाँ पाणी हंजोवा वाते रोज नवी वाताँ भणवा में आवे। अणाँ में एक वात, वाटर हारवेस्टिंग रे नाम पे घणी जोर दई ने वताई जाइरी है जणी में घराँ री छताँ रो पाणी पाइपाँ ऊँ ट्यूब वैल या दूजा साधन ऊँ सीधो जमी में उतार्यो जावे जो जमींदोज पाणी बढ़ावे। “वाटर” रो मतलब तो पाणी अने “हारवेस्टिंग” रो मतलब फसल लेणों व्हे। अबै यो हमज में न्हीं आवे के पाणी री फसल किस्तर लई सकाँ ? खेत में आँपी एक दाणों वावाँ तो हौ दाणाँ नीपजे पण पाणी सीधो धरती में पौंचावाँ तो वो व्हे जणी ऊॅँ वत्तो किस्तर वई सके ? अने व्हे जतरोइज रे, तो यो पाणी पाइपाँ अनै ट्यूब वैलाँ ऊँ हूद्दो जमी में उतरे के पैली ज्यूं वैवतो वैवतो जमीं में उतरे, अणी में फरक कई पड़ै ?
अणी जमीं पै मगरा, बीड़, खेत चरणोट, वाग वगीचा, चौगान, ताल तलैया, सड़काँ अने गली कूँचा कतरा भाग में और मोटा मकाना री छताँ कतरा भाग में ? यो जो होचाँ तो अशी पाकी छताँ कुल जमीं रा रीप्या म्हूँ पाँच पया भाग में भी नी व्हेगा। मगरा में जंगल व्हे, वस्ती रे लारै लारै थोड़ी खेती अने थोड़ा वाग वगीचा व्हे, सड़काँ रे दोई आड़ी काची पटरी व्है, घराँ में थोड़ोक काचो चौक व्हे तो वणी म्हूँ पाणी धरती में अवश जावै। अणी पिच्चाणू पया भाग रो तो सत्यानाश करी ने आँपी जंगल काटाँ, के डामर के सीमट-गिट्टी नाकाँ, हगरी खेती उजाड़ ने कॉम्पलेक्स वणावाँ, घर में एक वेंत भर्यो काचो भाग न्हीं देखणों छावाँ, पण पाँच पया भाग री छताँ रो पाणी जमीं में उतारवा पे अतरो खर्चो कराँ तो या कठारी हूँश्यारी है ? उदयपुर रे सज्जनगढ़ जशी ऊँची जगाँ पे वरखा रो पाणी हँजोवणो एक अलग वात है। क्यूँ के अठे जतरो पाणी रोक्यो जावे वो मगरा रे माथे रुके जणी ने न्हीं रोकां तो व्हो नीचे परो वई जाय ने पंप किदा वना पाछो न्ही आवे।
अठे रामायण रे सुंदरकांड रे तीजा दोहा रे पेली रे छंद री एक लाइन याद आवै – “बन, बाग, उपवन, वाटिका, सर, कूप वापी सोहही” – जदी हनुमान जी ऊँचा मगरा पूँ लंका देखी तो वणाँ ने वन, बाग, उपवन, वाटिका, सरोवर, कूड़ा अनै वावडियाँ नजरै आई जी वणाँ ने घणी हुँवांई। मतलब हूद्दो है के जठै वन, बाग, उपवन अने वाटिका व्हेगा वठै सरोवर, कूड़ा अनै वावडियाँ आपो आप ही जरूर व्हेगा।
वरसाँ ऊँ परखी अणी रीत ने आँपी न्हीं मानाँगा तो वाटर हारवेस्टिंग व्हे न्हीं व्हे, पाइप हारवेस्टिंग जरूर वई जायगा अने आपाँने नाची कूदीने पगाँ हाम्मे नारणों पड़ेगा।
– ज्ञान प्रकाश सोनी