केवल राजस्थान में ही मनरेगा योजना के लिये 3.4 करोड़ सीमेंट के कट्टे और 8 करोड़ किलो स्टील सरिया प्रतिवर्ष खरीदा जाना अनुमानित है जिसे पंचायतवार बिलौचियों के माध्यम से न खरीद कर राज्य स्तर पर सीधा निर्माताओं से खरीदा जावे तो कुल मात्रा के कारण होने वाली प्रतिस्पर्धा, और बिलौचियों के हटने से दरें लगभग 10 प्रतिशत कम हो सकती हैं और लगभग 120 करोड़ रूपये प्रतिवर्ष बचाये जा सकते हैं । पूरा लेख आगे पढ़िये .. ..
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) देश की एक महत्वाकांक्षी योजना है जो सन् 2005 में राष्ट्रीय स्तर पर प्रारंभ की गई थी। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र के हर परिवार को कम से कम 100 दिन का रोज़गार उसके निवास स्थान के आसपास ही उपलब्ध कराने की गारंटी देना है । देश की 2,57,838 ग्राम पंचायतों के 13.28 करोड़ जॉब कार्ड धारक इस योजना से लाभान्वित हो रहे हैं और प्रतिदिन औसत 28.35 लाख लोग इस योजना के अंतर्गत कार्यरत रहते हैं । इस योजना पर राष्ट्रीय स्तर पर अब तक 3213 अरब रूपये व्यय हो चुके हैं । विगत वर्ष, यानि 2015-16 में 34,700 करोड़ का बजट आवंटन था जबकि व्यय 40,678 करोड़ रूपयों का हो चुका है । वर्ष 2016-17 के बजट में मनरेगा योजना के लिये 38,500 करोड़ रूपयों का प्रावधान किया गया है । कहा यह जाता है कि यह योजना विश्व की विशालतम रोज़गार योजना है ।
मनरेगा कार्यों की गाइडलाइन के अनुसार कुल प्रावधान की 40 % राशि सामग्री मद में और 60% राशि श्रम मद में खर्च करने का प्रावधान है । इस तरह राष्ट्रीय स्तर पर लगभग 16,000 करोड़ रूपयों की सामग्री खरीद इस योजना के लिये हर वर्ष होने का अनुमान है ।वर्तमान में सामग्री खरीद पंचायत स्तर पर होती है जिसकी पुष्टि विगत कुछ दिनों से राजस्थान के समाचार पत्रों में पंचायत समिति वार जारी निविदा सूचनाओं से की जा सकती है । इन निविदाओं में प्रति पंचायत 30 लाख रूपये की सामग्री खरीद पूरे वित्त वर्ष 2016 – 17 के लिये उल्लिखित है । निविदा सूचनाओं के अनुसार सीमेंट, स्टील (सरिया), रेती, गिट्टी, ईंटें, लोहे के दरवाज़े, खिड़कियाँ, सीमेंट पाइप जालियाँ व अन्य सभी इमारती सामान एक ही ठेकेदार को सप्लाई करना है । यह एक सामान्य सी बात है कि सीमेंट या स्टील का अधिकृत विक्रेता ईंटें और गिट्टी या स्टील के दरवाज़े आदि सप्लाई नहीं करता है और स्टील के दरवाज़े बनाने वाला सीमेंट या स्टील का अधिकृत विक्रेता नहीं होता है । इससे स्पष्ट है कि कोई बिलौचिया ही ऐसे ठेके लेगा और अलग अलग विक्रेताओं से सामान खरीद कर पंचायत को देगा । राजस्थान के सभी 33 जिलों की 9892 पंचायतों में यह योजना लागू है और राज्य में विगत वित्त वर्ष 3260 करोड़ रुपये का व्यय इस योजना के अंतर्गत हुआ । इस आधार पर केवल राजस्थान में ही करीब 1956 करोड़ रूपये की सामग्री खरीद होने का अनुमान है ।
इस व्यवस्था में निर्माण सामग्री की लागत वास्तविक से अधिक होना स्वाभाविक है । प्रकाशित निविदा सूचनाओं में से कुछ में अलग अलग निर्माण सामग्री का विवरण भी दिया गया है जिससे यह विदित होता है कि प्रति पंचायत करीब 9 लाख रूपये का सीमेंट और करीब 3 लाख रूपये का स्टील (सरिया) खरीदा जाना अनुमानित है । इस आधार पर राजस्थान की 9892 पंचायतों में एक वित्त वर्ष में 890 करोड़ रूपयों की सीमेंट (लगभग 3.4 करोड़ कट्टे) और 296 करोड़ रूपयों का स्टील ( लगभग 8 करोड़ किलो) सरिया खरीदा जाना अनुमानित है । उक्त आधार पर यह ज्ञात होता है कि निर्माण सामग्री लागत का लगभग 30% भाग सीमेंट पर और 10% भाग स्टील (सरिये) पर व्यय होता है । इस तरह राष्ट्रीय स्तर पर 4800 करोड़ की सीमेंट और 1600 करोड़ रूपयों के स्टील (सरिये) की खरीद नरेगा योजना के लिये अनुमानतः होती है । शेष 9600 करोड़ रूपयों का व्यय अन्य विविध निर्माण सामग्री पर होता है ।
निर्माण सामग्री में से यदि केवल सीमेंट और स्टील (सरिये) को बिलौचियों के माध्यम से पंचायतवार विकेन्द्रित रूप से खरीदने के बजाय सरकार राज्य स्तर पर सीधे निर्माताओं से खरीदने का नीतिगत निर्णय ले तो इन दोनों प्रमुख निर्माण सामग्रियों की गुणवत्ता भी सुधरेगी और बिलौचियों के हटने से लागत भी कम आयगी । यदि अनुमानतः 5% बचत बिलौचियों का कमीशन समाप्त होने से और 5% बचत प्रतिस्पर्धा के कारण दरों में कमी से मानें तो केवल राजस्थान में ही लगभग 120 करोड़ रूपये सालाना की बचत हो सकती है और राष्ट्रीय स्तर पर 640 करोड़ रूपये सालाना की बचत हो सकती है ।राज्य स्तर पर खरीद करने से एक और लाभ यह होगा कि सरकार सीमेंट के हर कट्टे पर बड़े अक्षरों में “मनरेगा” लिखवा सकती है और ऐसे ही सरिये की हर दो –तीन मीटर लंबाई पर भी “मनरेगा” ढलाई के दौरान ही लिखवा सकती है जिससे सरकारी सीमेंट और सरिये का अन्यत्र उपयोग करना कठिन हो जायगा और ऐसा करने वाले को सप्रमाण पकड़ा भी जा सकेगा । इतनी विशाल मात्रा में आदेश देने पर तो सीमेंट कंपनियाँ सीमेंट का रंग ही आम सीमेंट से कुछ अलग करने को भी सहमत हो सकती हैं ।मनरेगा में श्रम भाग से तो बिलौचिये पहले ही हट चुके हैं और यदि उपरोक्त नीतिगत बदलाव होता है तो सामग्री भाग का भी काफ़ी हिस्सा बिलौचियों से मुक्त हो जायगा और इसके बहुत ही सार्थक परिणाम निकलेंगे ।
नोट – 1) लेख में लिये गए साँख्यिकी आँकड़े www.mnregaweb4.nic.in से लिये गये हैं ।
2) संदर्भित निविदा सूचनाओं की प्रति संलग्न है ।
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एक ही ठेकेदार से लगभग 30 लाख रूपये लागत की सीमेंट, स्टील (सरिया), रेती, गिट्टी, ईंटे, लोहे के दरवाज़े खिड़कियाँ, सीमेंट ब्लॉक व जालियाँ, ह्यूम पाईप आदि लेना प्रतिस्पर्धा में कमी लाता है क्योंकि ऐसा ठेकेदार इन सभी विविध सामग्री का मूल सप्लायर नहीं हो सकता है। इस तरह यह सीधी खरीद न हो कर बिलौचिये के माध्यम से होने वाली खरीद है जिसमें लागत अधिक आना निश्चित है । |
– ज्ञान प्रकाश सोनी
Dear soni sb,
after a long find some good suggestion, but who will adopt? KUVE ME BHANG PADI HE
regards
derashri