आज विश्व में हम 7 अरब लोग हैं जिसमें से लगभग 1 अरब लोग अपनी भूख को प्रयास करने पर भी शांत नहीं कर पाते हैं। सन् 2050 तक विश्व में 2 अरब लोगों की और वृद्धि होने का अनुमान है तब अपनी उदरपूर्ति न कर पाने वाले लोगों की संख्या कितनी होगी यह अनुमान लगाना भयावह है। हम में से प्रत्येक को रोज़ मात्र 2 से 4 लिटर पानी पीने के लिये और 100 से 150 लिटर पानी नहाने धोने जैसे कामों के लिये चाहिये परंतु जो आहार हम रोज़ लेते हैं, उसे तैयार करने में काम आने वाली सामग्री जैसे अनाज, मांस, सब्ज़ी, फल, आदि के प्रतिशत व किस्म के आधार पर 2000 से 5000 लिटर पानी की खपत हो जाती है। आहार परिवर्तन से हम काफ़ी पानी बचा सकते हैं यह सोच इस वर्ष (2012) के जल दिवस के लिये संयुक्त राष्ट्र का "यू एन वॉटर" घटक द्वारा घोषित विशेष विषयवस्तु (थीम) "जल एवं आहार सुनिश्चितता" (Water and Food Security) की है।
विश्व जल दिवस हर वर्ष 22 मार्च को मनाया जाता है जिसका उद्देश्य जन सामान्य में जल संरक्षण के प्रति चेतना जागृत करना है। संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में "पर्यावरण एवं विकास" विषय पर रियो डि जेनेरो शहर (ब्राज़ील) में सन् 1992 में हुए एक सम्मेलन में हर वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था। 22 मार्च 1993 को पहला विश्व जल दिवस मनाया गया था और हर वर्ष इस दिवस पर होने वाली गतिविधियों में विस्तार होता जा रहा है। इसी कड़ी में 22 मार्च 2012 को 16 वाँ विश्व जल दिवस विभिन्न देशों में स्थान स्थान पर मनाया गया।
संयुक्त राष्ट्र का "यू एन वॉटर" घटक हर वर्ष के विश्व जल दिवस के लिये विशेष विषयवस्तु (थीम) की घोषणा करता है और सभी सदस्य देश इसे इस विशेष विषयवस्तु के आधार पर मनाते है। सन् 2012 के लिये विशेष विषयवस्तु "जल एवं आहार सुनिश्चितता" (Water and Food Security) है जो आज की परिस्थियों को देखते हुए एकदम सटीक है।
जैसा कि ऊपर कहा गया, हम में से प्रत्येक को रोज़ मात्र 2 से 4 लिटर पानी पीने के लिये और 100 से 150 लिटर पानी नहाने धोने जैसे कामों के लिये चाहिये परंतु जो आहार हम रोज़ लेते हैं, उसे तैयार करने में काम आने वाली सामग्री जैसे अनाज, मांस, सब्ज़ी, फल, आदि के प्रतिशत व किस्म के आधार पर 2000 से 5000 लिटर पानी की खपत हो जाती है। खपत के इस अनुमान में आहार में काम आने वाली सामग्री को उत्पादित करने में लगने वाले पानी की मात्रा भी शामिल है। उदाहरण के लिये यह उल्लेख करना है कि जहाँ एक किलो गेहूँ के उत्पादन के लिये औसतन 1000 लिटर पानी की आवश्यकता होती है वहीं एक किलो जौ के लिये 700 लिटर, एक किलो चने के लिये 600 लिटर पानी ही चाहिये जबकि एक किलो चाँवल के लिये 3500 लिटर पानी चाहिये। इन सबकी तुलना में आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि एक किलो माँस के लिये 15,500 लिटर पानी की आवश्यकता होती है। सुपुष्ट अनुमानों के अनुसार उत्पादित अन्न का 30% भाग कभी खाने के काम नहीं आ पाता है क्योंकि यह परिवहन, संग्रहण, वितरण के दौरान या पके हुए भोजन की झूठन के रूप में बरबाद हो जाता है।
इस तरह आहार से जुड़ी पानी की खपत में कमी के प्रयास अन्य घरेलू खपत में कमी के प्रयासों की तुलना में अधिक व्यापक और प्रभावी हो सकते हैं। आप इस महान काम में निम्नलिखित रूप से भागीदार हो सकते हैं –
- चाँवल और गेहूँ जैसे अधिक पानी की खपत वाले अन्नों का उपयोग घटाना चाहिये व इसके बजाय मक्का, जौ, बाजरे, चने जैसे मोटे अनाजों का वर्ष के कुछ माहों में या सप्ताह में कुछ दिन उपयोग करें अथवा सदा ही मिश्रित अन्नों वाले आटे (उदाहरणार्थ – गेहूँ – 70-75%, जौ – 15-20% व चना – 5-10%) का उपयोग करना चाहिये।
- वर्षा ऋतु में नगण्य सिंचाई से पैदा होने वाली तिल्ली के तेल का उपयोग बढ़ावें व सर्दी में रबी फ़सल के तौर पर न्यूनतम 2 से 3 सिंचाई से पैदा होने वाली सरसों के तेल का उपयोग घटावें। मूँगफली आंशिक रूप से वर्षा ऋतु में और आंशिक रूप से रबी में पैदा होती है और इसे 1 या 2 सिंचाई की आवश्यकता होती है इसलिये इसकी प्राथमिकता तिल्ली व सरसों के बीच की होनी चाहिये।
- बेलों पर लगने वाली सब्ज़ियों (जैसे सेम, कद्दू, लौकी, तुरई, करेले आदि) के उत्पादन में पौधे पर लगने वाली सब्ज़ियों (जैसे भिंडी, गोभी, मटर, टिंडे आदि) या ज़मीन के नीचे लगने वाली सब्ज़ियों (जैसे मूली आदि) की तुलना में काफ़ी कम पानी चाहिये इसलिये भोजन में आवश्यक हरी सब्ज़ियों में बेलीय सब्ज़ियों का प्रतिशत बढ़ाना चाहिये।
- बिना सिंचाई के पैदा होने वाली खाद्य सामग्री (जैसे कांगणी, सामा, कैर-साँगरी, आदि) का उपयोग बढ़ाना चाहिये।
- खाद्य सामग्री व पके हुए भोजन की बरबादी न हो, यह प्रयास करने चाहिये।
- माँसाहार के बजाय शाकाहार को प्राथमिकता देनी चाहिये।
नोट – लेख में प्रयुक्त अधिकांश आँकड़े संयुक्त राष्ट्र संघ के एक घटक विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agricutural Organisation – FAO) एवं वॉटर फुटप्रिंट नामक संस्था के प्रकाशनों पर आधारित हैं।
लेखक – ज्ञान प्रकाश सोनी