संयुक्त राष्ट्र संघ ने अच्छे स्वास्थ्य के लिये शौचालय की महत्ता की ओर ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से प्रति वर्ष 19 नवम्बर को “विश्व शौचालय दिवस” मनाने का एक प्रस्ताव पारित किया है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों के करीब 2.5 अरब (36%) लोग खुले में शौच के लिये मजबूर हैं जबकि विश्व की जनसंख्या करीब 7 अरब है। खेद की बात यह है कि ऐसे खुले में शौच के लिये मजबूर लोगों में से 63.80 करोड़ (देश की कुल जनसंख्या के 53%) लोग भारतीय हैं। स्वाधीनता के 66 वर्ष बाद भी भारत की यह स्थिति शोचनीय है क्योंकि हमारा देश इस मामले में इंडोनेशिया जैसे देश से भी पिछड़ा हुआ है जहाँ शौचालय रहित लोगों की संख्या 5.80 करोड़ है जो वहाँ की कुल जनसंख्या (24.7 करोड़) का 23% ही है। चीन में तो शौचालय सुविधा रहित लोगों की जनसंख्या केवल 4% ही है। ऐसी विचारणीय स्थिति होते हुए भी समाचार पत्रों से कहीं भी यह नहीं झलकता कि देश में हमने “विश्व शौचालय दिवस” मना कर इस बारे में चेतना जागृत करने का प्रयास किया हो। ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे की उपेक्षा राष्ट्रहित के विरुद्ध है।
खुले में शौच निवृति की मजबूरी असुविधाजनक तो होती ही है, किसी नागरिक, विशेषकर महिलाओं की निजता (privacy) का गंभीर उल्लंघन भी करती है। ऐसे मल त्याग से भू जल के प्रदूषित होने का भी ख़तरा बना ही रहता है जो वर्षा ऋतु में और भी गंभीर हो जाता है क्योंकि मल धूप से सूखने के पहले ही पानी के साथ बह निकलता है और रोगकारक कीटाणु फैलाता है। प्रदूषित पानी के कारण उल्टी-दस्त, हैजे जैसे संक्रामक रोग फैलते हैं।
शौचालय सुविधा से रहित लोगों की संख्या में नीचे की तालिका के अनुसार भारत का स्थान विश्व में पहला है और पड़ौसी देशों की तुलना में बहुत ही ख़राब स्थिति है –
क्रमांक |
देश |
कुल जनसंख्या (करोड़ में) |
शौचालय की सुविधारहित लोगों की संख्या (करोड़ में) |
प्रतिशत |
1. |
भारत |
121.01 |
63.80 |
53% |
2. |
पाकिस्तान |
18.30 |
4.80 |
26% |
3. |
इंडोनेशिया |
24.70 |
5.80 |
23% |
4. |
चीन |
133.13 |
5.00 |
4% |
भारत में शौचालय रहित लोगों में राज्यवार अंतर तो है ही, शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में भी बहुत अधिक अंतर है। केरल की स्थिति सबसे अच्छी है तो झारखंड की सबसे बुरी। बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश, उड़ीसा और राजस्थान ऐसे राज्य हैं, जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में 80% से अधिक लोग शौचालय सुविधा से वंचित हैं।
भारत की 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार विगत दस वर्षों में हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा व गोआ में ग्रामीण क्षेत्रों में 20% से अधिक परिवारों को शौचालय सुविधा उपलब्ध कराई गई है और शहरी क्षेत्रों में गोआ, दमन और दीव व पौडिचेरी में शहरी क्षेत्रों में 15% से अधिक परिवारों को शौचालय सुविधा उपलब्ध कराई गई है। यानि कि इस दिशा में पिछड़े राज्यों ने अभी भी इस कार्य को वांछित प्राथमिकता नहीं दी है जो खेदप्रद है।
भारत सरकार ने “निर्मल भारत अभियान” के अंतर्गत सन् 2022 तक सभी को शौचालय उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया है लेकिन यह लक्ष्य हम हासिल कर पाते हैं या नहीं यह तो समय ही बतायगा। सब को शौचालय सुविधा उपलब्ध कराने में पर्याप्त पानी की व्यवस्था करना सबसे बड़ी चुनौती है। काम में लिये गए पानी को शुद्ध कर पुनर्चक्रित करना ही इसका एकमात्र उपाय नज़र आता है।
– ज्ञान प्रकाश सोनी
स्त्रोत –
//www.thehindu.com/sci-tech/health/policy-and-issues/un-marks-world-toilet-day/article5369040.ece
//www.thehindu.com/sci-tech/health/policy-and-issues/india-is-drowning-in-its-own-excreta/article3524150.ece?ref=relatedNews
//counterview.org/2013/10/10/toilets-our-rulers-tell-us-are-their-priority-census-of-india-data-of-2001-and-2011-clearly-suggest-that-they-indeed-are-not/
//en.wikipedia.org/wiki/List_of_countries_by_population