स्थानीय विकास की परियोजनाएं कम से कम लागत में अपने लक्ष्य को प्राप्त करें, पूर्व निर्धारित अवधि में पूरी हों, चाहे गए परिणाम दें, दीर्घकाल तक उपयोगी रहें, संचालन सुगम हो इनके कुप्रभाव न्यूनतम हों इसके लिये इनकी परिकल्पना से लेकर इनके पूरा होने तक और बाद में इनके संचालन में जन भागीभागीदारी का महत्व किसी से छिपा हुआ नहीं है। लेकिन वास्तविकता यह है कि अधिकतर मामलों में जन भागीदारी की बात, मात्र एक दिखावा, बल्कि कई बार तो एक छलावा रह जाती है और अंत में होता वही है जो कि सरकारी तंत्र के कर्ता धर्ता चाहते हैं । जन भागीदारी सुनिश्चित कैसे हो इस पर आगे पढ़िये।
कहने को हमारे यहाँ लोकतंत्र है और हमारी सरकारें यह घोषणा भी करती रहती है कि वो स्थानीय विकास में जन भागीदारी की अपेक्षा रखती हैं और इसे प्रोत्साहित करना चाहती हैं । समय समय पर सरकार स्वेच्छा से या कानूनी खानापूर्ती के लिये विकास योजनाओं के लिये जनता से सुझाव व आपत्तियाँ माँगती भी है और कई व्यक्ति अथक परिश्रम व समय लगा कर सरकार के माँगने पर या बिना माँगे आपने सुझाव भेजते भी रहते हैं । हमारे यहाँ कई अच्छी और उत्तरदायी स्वयंसेवी संस्थाएं भी हैं जो समय समय पर अपने सदस्यों के बीच मंथन कर अपने सुझाव स्थानीय जन प्रतिनिधियों, स्थानीय प्रशासन व सरकार को भेजती रहतीं हैं ।
लेकिन वास्तविकता यह है कि अधिकतर मामलों में जन भागीदारी की बात, मात्र एक दिखावा, बल्कि कई बार तो एक छलावा रह जाती है और अंत में होता वही है जो कि सरकारी तंत्र के कर्ता धर्ता चाहते हैं । ऐसी हालत में जो व्यक्ति व संस्थाएं ऐसे सुझाव भेजने में अपना समय, श्रम व धन लगाती हैं वे हतोत्साहित हो कर आगे और सुझाव भेजना ही बंद कर देती हैं । परिणामतः स्थानीय विकास की परियोजनाएं भारी लागत के बावज़ूद वांछित परिणाम नहीं दे पातीं हैं और उनका संचालन कष्टप्रद रहता है । इसका उत्तरदायित्व निर्धारण भी नहीं हो पाता क्योंकि, अधिकतर मामलों में, जब तक योजना पूरी हो तब तक सरकारें बदल जातीं हैं और अधिकारी भी स्थानांतरित या सेवानिवृत हो जाते हैं ।
इस स्थिति का एक मुख्य कारण यह है कि विकास योजनाओं की स्वीकृति, क्रियान्वन और संचालन की प्रक्रिया की जो व्यवस्था है वो लगभग अंग्रेज़ों के ज़माने की ही चली आ रही है जो उनके हितों के अनुकूल थी । उसमें जन भागीदारी को मात्र दिखावा रखा जाना और वास्तविक नियंत्रण उनका ही होना उनके लिये ज़रूरी था । स्वाधीनता मिलने के बाद हम ऐसे कोई आधारभूत बदलाव नहीं कर पाए हैं जिनसे जन सहभागिता सुनिश्चित हो सके । संभवतः या तो इस बारे में सोचा ही नहीं गया है या फिर हमारे अपने जन प्रतिनिधियों को भी पुरानी परिपाटी ही रास आ चुकी है, इसलिये वो कोई परिवर्तन चाहते ही नहीं हैं ।
इस स्थिति में बदलाव के लिये क्या किया जा सकता है, इस पर मनन के लिये यदि हम ऐसे किसी देश, राज्य या शहर की व्यवस्था का अध्ययन करें जहाँ गुलामी नहीं रही हो या बहुत पहले ही समाप्त हो चुकी हो तो कुछ निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं । इसी प्रयोजन से अमेरिका के ओहियो राज्य के एक शहर क्लीवलैंड के स्थानीय विकास की प्रशासनिक व्यवस्था के मुख्य प्रावधानों का विवरण आगे दिया जा रहा है । क्लीवलैंड के आधारभूत आँकड़े राजस्थान के उदयपुर शहर की तुलना में निम्न प्रकार से हैं –
क्रमांक | विवरण | क्लीवलैंड | उदयपुर |
1. | राज्य जिसमें स्थित है | ओहायो | राजस्थान |
2. | देश जिसमें स्थित है | संयुक्त राज्य अमेरिका | भारत |
3. | स्थापना वर्ष2013 तक बीती अवधि (वर्ष) | 1796217 | 1559454 |
4. | वार्षिक वर्षा (मिलीमीटर) | 990 | 654 |
5. | औसत अधिकतम तापमान (सेंटीग्रेड)औसत न्यूनतम तापमान (सेंटीग्रेड) | 39.8070 | 23.10(-) 2.20 |
6. | भौगोलिक क्षेत्रफल (वर्ग किलोमीटर) | 213.6 | 64 |
7. | जनसंख्या (लाखों में) | 3.97 (2010) | 5.98 (2011) |
8. | जनसंख्या का घनत्व (प्रति वर्ग कि.मी.) | 1859 | 9344 |
9. | स्थानीय निकाय में चुने हुए प्रतिनिधियों की संख्या | 19 | 55 |
10. | स्थानीय निकाय कब से कार्यरत है | 1836 | 1922 |
11. | निकाय की वैब साइट | www.clevelandcitycouncil.org | www.udaipurmc.org |
अपने यहाँ स्थानीय निकाय को नगर की श्रेणी के अनुसार नगर पालिका, नगर परिषद् या नगर निगम कहा जाता है लेकिन अमेरिका में सिटि कांउसिल का नाम प्रचलित है । अपने स्थानीय निकायों के नाम बड़े हैं लेकिन इनकी शक्तियाँ बहुत ही सीमित हैं और इनके जिम्मे काम भी कम है । इसके विपरीत वहाँ स्थानीय निकायों को पूरी तरह से स्वायत्ता है, अपार शक्तियाँ हैं और जिम्मेदारियाँ भी पूरी हैं । क्लीवलैंड की सिटि कांउसिल नागरिक सेवाएँ, नगर नियोजन, स्वच्छता आदि तो देखती ही है, उसके जिम्मे जल प्रदाय, विद्युत व्यवस्था, पुलिस, न्याय व्यवस्था, ट्राफिक नियंत्रण, आदि भी है और यहाँ तक कि वहाँ का अंतर राष्ट्रीय हवाई अड्डा और वहाँ का बंदरगाह भी इसके अधीन है ।
अपने स्थानीय निकायों में विभिन्न कामों के लिये समितियाँ बनाई जाती हैं लेकिन इसके कर्ता धर्ता चुने हुए पार्षद ही होते हैं और इसमें जन भागीदारी नगण्य सी है । वहाँ पर भी समितियाँ तो हैं लेकिन उन्हें परामर्श देने और नियंत्रित रखने के लिये दक्ष लोगों के आयोग, बोर्ड, आदि का विधिक प्रावधान है जिसके सदस्य योग्य नागरिक होते हैं जिससे जन भागीदारी सुनिश्चित होती है ।
उदाहरण के लिये वहाँ की सिटि कांउसिल में एक नगर नियोजन समिति (सिटि प्लानिंग कमेटी) है लेकिन इसे मार्गदर्शन देने के लिये एक सात सदस्यीय “नगर नियोजन आयोग” है और इसमें केवल एक सदस्य पार्षद होता है बाकी अपने क्षेत्र के स्थानीय एक्सपर्ट नागरिक होते हैं । विधिक प्रावधान यह है कि यह आयोग, नगर नियोजन से संबेधित कोई भी अनुशंसा, जन सुनवाई के बिना नहीं दे सकता है। निकाय की समिति इस आयोग की अनुशंसाओं पर ही काम करती है ।
इसी तरह से सार्वजनिक उद्यानों, नगरीय वनों और हरित क्षेत्रों के विकास व रखरखाव के लिये एक कमेटी है लेकिन इसके मार्गदर्शन के लिये एक 19 सदस्यीय “वृक्ष आयोग” है जिसका एक सदस्य राजकीय उद्यान निदेशक होता है बाकी 18 सदस्य स्थानीय नागरिक और विषय विशेषज्ञ होते हैं । पुरा संपदा के संरक्षण व पर्यटन विकास के लिये एक 11 सदस्यीय “लैंडमार्क्स आयोग” है जो नगर की धरोहरों के रखरखाव, संरक्षण और सौंदर्यीकरण से संबंधित निर्णय लेता है। इसके अलावा हाउसिंग एडवाइज़री बोर्ड, बोर्ड ऑफ़ ज़ोनिंग अपील्स, आदि हैं और ये जनता के सुझावों का स्वागत करते हैं और उन्हें पूरा महत्व भी देते हैं । ऐसे सब आयोगों और बोर्डों के लिये नामित सदस्य अधिकांशतः अवैतनिक रूप से काम करते हैं जिनमें नगर के विकास के लिये सेवा भावना ही मुख्य होती है ।
सिटि कांउसिल की बैठक हर सोमवार को शाम के 7.00 बजे होना निर्धारित है और हर बैठक जन सामान्य के लिये खुली रहती है यानि कि कोई भी व्यक्ति इसमें भाग लेने के लिये स्वतंत्र है । सिटि काउंसिल एक साप्ताहिक पत्र “सिटि रिकॉर्ड” प्रकाशित करने के लिये बाध्य है जिसमें विगत सप्ताह में सिटि कांउसिल की कार्रवाही व निर्णयों का विवरण दिया जाना होता है । यह “सिटि रिकॉर्ड” 1931 से लगातार प्रकाशित हो रहा है और अब तो इसे निकाय की वैब साइट पर भी तत्काल उपलब्ध कराया जाता है । 10 जुलाई, 2013 का अंक आप इस निकाय की वैब साइट पर देख सकते हैं ।
सिटि कांउसिल की वैब साइट पर आप अपने सुझाव निशुल्क दे सकते हैं जिसका उत्तर आना निश्चित है ।
इन सबसे भी बड़ा प्रावधान यह है कि यदि कोई व्यक्ति स्थानीय निकाय से संबंधित कोई भी प्रस्ताव, इस घोषणा के साथ दे कि उसके पास कम से कम पाँच हज़ार मतदाताओं की हस्ताक्षरित लिखित सहमति अपने प्रस्ताव के लिये है, तो स्थानीय निकाय को एक निश्चित अवधि में उस पर विचार कर निर्णय लेना होगा । यदि इस निर्णय से प्रस्ताव देने वाला समूह संतुष्ट नहीं है तो उसे जनमत संग्रह कराने का अधिकार है।
उक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि अपने यहाँ भी स्थानीय विकास में जन भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिये विधिक प्रावधानों में आधारभूत बदलाव लाने होंगे अन्यथा जन भागीदारी की उम्मीद करना एक दिखावा और समय की बरबादी ही साबित होता रहेगा ।
– ज्ञान प्रकाश सोनी
एम. ई. (ऑनर्स), आई आई टी, रूड़की
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यह लेख 15 जुलाई 2013 को उदयपुर विचार मंच, उदयपुर द्वारा आयोजित चर्चा में लेखक द्वारा प्रस्तुत वार्ता पर आधारित है।
संदर्भ (References) –
//en.wikipedia.org/wiki/Cleveland
//en.wikipedia.org/wiki/Udaipur
//www.clevelandcitycouncil.org
//www.udaipurmc.org/