लताएं – मन को लुभाएं
– ज्ञानप्रकाश सोनी
पर्यावरण संरक्षण और पानी बचाने का महत्व किसी से छिपा नहीं है। पौधे कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित कर हमें ऑक्सीजन देते हैं और इनके पत्ते चलती हवा से धूल के कण अपनी सतह पर रोक कर हवा में धूल के कणों की मात्रा घटाते हैं यह भी हम सब जानते हैं। पौधों की जड़ें जमीन से पानी खींचतीं हैं और इनके पत्ते इस पानी को वाष्पोत्सर्जित करते हैं जिससे हवा का तापमान और सूखापन घटता है यह भी सर्वविदित है। लताओं के कारण दीवारों पर धूप कम आ पाती हे जिससे भवन में गर्मी घटती है। इस प्रकार पर्यावरण संरक्षण के लिये पौधों का महत्व स्पष्ट है और इसीलिये अपने घरों में पौधे लगाने की परम्परा रही है। लताएं कम भूमि और कम पानी में अधिक हरियाली प्रदान करती हैं व छाया देती हैं साथ ही रंग रंगीले फूलों से घर आंगन की शोभा भी बढ़ती हैं। इस कारण इन्हें घरों या कार्यालयों के प्रवेश स्थल, दीवारों के साथ साथ या किनारों पर लगाना बहुत ही उपयोगी रहता है।
जमीनों की बढ़ती लागत के कारण आजकल घरों में खुले स्थान कम रखे जाने का प्रचलन बढ़ रहा है जिसके कारण लॉन या पौधों की क्षंखला लगा पाना कठिन होता जा रहा है। फिर पानी की कमी भी है जिस कारण यदि लॉन व पौधे आदि हों भी तो उन्हें पानी दे कर जीवित रखना मुश्किल है। इन परिस्थितियों में लताएं लगाना बहुत उपयोगी है क्योंकि एक तो इन्हें बहुत कम खुली जगह चाहिये, दूसरा पानी भी कम चाहिये और तीसरी बात यह
कि इन्हें आवश्यकतानुसार काट छांट कर मनवांछित रूप से फैलाया व चढ़ाया जा सकता है। सामान्य लताएं दो मंजिले भवन की ऊँचाई तक आसानी से चढ़ाई जा कर इच्छानुसार फैलाई जा सकती हैं। इससे हम जहाँ चाहें वहाँ हरियाली और छाया कर सकते हैं।
प्लॉट के मुख्य प्रवेश द्वार पर लगाने पर यह लता बहुत ही सुंदर लगती है और आप किसी को छोड़ने या लेने आवें तो इसकी छाया में खड़े रह कर बात कर सकते हैं। इसके लिये मुख्य द्वार के किसी एक तरफ़ इसे लगा देने के बाद एक जंगला द्वार के आर पार लगाना होता है जिस पर यह बेल टिकी रह सके। समय समय पर इसकी छंटाई कर इसे वांछित आकार में रखा जा सकता है।
यह बेल सभी नर्सरी वाले रखते हैं। लगाने के समय 0.6 x 0.6 x 0.6 मीटर नाप का खड्डा खोद कर उसमें अच्छी मिट्टी 2/3 भाग व देशी खाद या वर्मी कम्पोस्ट 1/3 भाग रखते हुए भरना चाहिये और पौधे को गमले या थैली से निकाल कर लगा देना चाहिये। प्रारंभिक अवस्था में तीसरे चौथे दिन पानी देना होता है व हर पखवाड़े निराई गुड़ाई करनी होती है। एक बरसात निकलने के बाद यह बेल जड़ पकड़ लेती है जिसके बाद केवल अपेक्षित आकार में छंटाई करनी होती है। पहले 3 से 5 मीटर तक मूल डाली ही रखी जावे और अन्य डालियों को काटते रहा जावे तो बढ़त जल्दी होती है और बेल का फैलाव आवश्यतानुसार ऊँचाई पर किया जा सकता है।
मधुमालती एक ऐसी लता है जो साल भर हरी रहती है और इस पर लाल, गुलाबी व सफेद रंग के मिश्रित गुच्छों के रूप में फूल आते हैं जिनमें भीनी खुशबू होती है। इसकी डालियाँ नर्म होती हैं जिन्हें आसानी से काटा छांटा जा सकता है। यह लता बहुत कम देखभाल मांगती है और एक बार जड़ पकड़ लेने के बाद पानी नहीं देने पर भी चलती रहती है।
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