“अभियंता दिवस” पर विशेष आलेख
भारत में हर वर्ष 15 सितंबर को “अभियंता दिवस” मनाया जाता है। प्रतिभा के धनी प्रसिद्ध अभियंता भारत रत्न डॉ. श्री मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म इस दिन हुआ था और उनके उत्कृष्ट कार्यों के स्मरण के उद्देश्य से यह परंपरा वर्ष 1968 से इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स द्वारा प्रारंभ की गई । सन् 2016 में मनाये गये 49 वें “अभियंता दिवस” पर दिये गये व्याख्यान को आगे पढ़िये।
शब्दकोशीय आधार पर तकनीकि क्षेत्र के कार्यों में नियोजित निर्देशन कुशलतापूर्वक करने वाले विशेषज्ञ व्यक्ति को अभियंता (इंजीनियर) कहा गया है और इस धरा पर जीवन यापन की परिस्थितियों का अनुकूलन करने की विधा को अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग) कहा गया है।
यद्यपि अभियांत्रिकी की औपचारिक शिक्षा तो उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ से ही शुरू हुई थी परन्तु अनौपचारिक रूप रूप से शिक्षित अभियंताओं और अभियांत्रिकी का जुड़ाव मानव सभ्यता के विकास के साथ सदा से ही है क्योंकि यह विकास अभियंता के योगदान तथा अभियांत्रिकी के उपयोग के बिना संभव ही नहीं है। भारत में अभियांत्रिकी विधा सदियों से उत्कृष्ट रही है । रामायण के सुंदरकांड में सर (सरोवर), कूप (कुआँ), वापी (बावड़ी) उपवन (बगीचा), सिंचाई, विविध आयुधों, नल व नील द्वारा सेतु (पुल) निर्माण, पुष्पक विमान आदि का उल्लेख उस समय की विकसित अभियांत्रिकी का संकेत देता है। इसी तरह महाभारत काल में लाक्षागृह का निर्माण, इंद्रप्रस्थ नगरी का विकास, संजय की दूरदृष्टि क्षमता, तीर से भूगर्भीय जल निकालने का उल्लेख भी यही दर्शाता है। सदियों पुराने महल, मीनारें, किले, मंदिर, खानें, विशाल बाँध और नहर प्रणालियाँ, निष्णात अभियंताओं की यशोगाथा आज भी गा रही हैं। राजस्थान और विशेषकर मेवाड़ में तो अभियांत्रिकी विकास और भी प्रखर था क्योंकि जब पश्चिम में इंजीनियरिंग कार्य और शिक्षा अपने शैशवकाल में थी तभी यहाँ अनौपचारिक रूप से शिक्षित अभियंता राजसमंद और जयसमंद जैसी विशाल झीलें उत्कृष्ट कारीगरी के साथ बना चुके थे और ज़ावर जैसी खानों से जस्ता और चाँदी निकाल रहे थे।
वर्तमान समय में अभियांत्रिकी विकास की गति लगातार तेज होती जा रही है और इस कारण जीवनशैली में भारी परिवर्तन हो रहे हैं, सुविधाएं बढ़ी हैं लेकिन साथ ही जटिलताएं भी बढ़ी हैं। टीवी, कम्प्यूटर, इंटरनेट, सैलफोन, आदि कई उपकरणों ने तो दिनचर्या पर क्रांतिकारी प्रभाव डाले हैं और इनके कारण अभियंताओं का कार्यक्षेत्र बढ़ता जा रहा है। अतः किसी देश के त्वरित विकास के लिये निष्णात अभियंताओं की उपलब्धि एक प्राथमिक आवश्यकता हो गई है। यह अपने देश का सौभाग्य है कि यहाँ मेघावी और प्रतिभा के धनी अभियंताओं की कमी नहीं है और यहाँ के अभियंताओं की धाक पूरे विश्व में है। खेद इस बात का है कि भारत देश,जो विश्व में अभियंताओं की आपूर्ति करता है, अपने ही अभियंताओं की प्रतिभा का वांछित लाभ नहीं ले पा रहा है और यहाँ से प्रतिभाओं का पलायन हो रहा है।
भारत में प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है, हर तरह की जलवायु और खनिज यहाँ उपलब्ध हैं, पर्याप्त धूप, जल संसाधन, समुद्री किनारे आदि यहाँ पर हैं, मेहनती युवा शक्ति यहाँ पर है केवल आवश्यकता इनके नियोजित उपयोग की है जिसके लिये पर्याप्त कुशल अभियंता भी यहाँ पर हैं। फिर भी यदि वांछित विकास नहीं हो पा रहा है तो यह एक गंभीर प्रश्न है जिस पर यथोचित मंथन समय की आवश्यकता है।
अगर हम अतीत की ओर देखें तो मैसूर के तत्कालीन राजा ने श्री विश्वैश्वरैया जैसे अभियंता को, उनकी योग्यता और कुशलता को देखते हुए, अपने राज्य का दीवान (प्रधान मंत्री) नियुक्त किया था और तत्कालीन आमेर के तत्कालीन राजा ने जयपुर शहर को बसाने की योजना बनाने और क्रयान्वित करने के लिये प्रखर वास्तुविद् श्री विद्याधर भट्टाचार्य को न्योता भेज कर बंगाल से बुलाया था । श्री जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. के. एल. राव की तकनीकि योग्यता देख कर उनको सिंचाई मंत्री पहले नियुक्त किया और बाद में चुनाव लड़वाया । श्री नेहरू ने ही स्लोक्हम जैसे निष्णात अमरीकि इंजीनियर को उस समय राष्ट्रपति के वेतन के बराबर वेतन दे कर भाखड़ा बाँध बनाने के लिये नियुक्ति दी और चंडीगढ़ बसाने के लिये प्रसिद्ध स्विस वास्तुविद् ला कार्बूजिये को उनकी शर्तों पर आमंत्रित किया । ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन सभी ने अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाया और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया ।
प्रतिभाएं चाह कर भी तिरस्कृत और पराधीन नहीं रह सकती हैं और इसलिये इस महान देश के विकास और जन समस्याओं के स्थाई समाधान के लिये आवश्यक यह है कि प्रतिभाशाली अभियंताओं को वांछित सम्मान देते हुए निर्णय लेने व कार्य करने की स्वतंत्रता दी जावे ताकि वे अपनी कुशलता का उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सकें।
जब तक इंजीनियरिंग की औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी तब तक अपनी नैसर्गिक पारंगतता और व्यावहारिक अनुभवजनिकत कुशलता का प्रदर्शन करने वाला व्यक्ति ही अभियांत्रिक कार्यों में टिका रह सकता था लेकिन आज के परिपेक्ष में औपचारिक शिक्षा के फैलाव व मान्न्यता के चलते यह पूरी तरह से संभव है कि अपनी डिग्री या डिप्लोमा के बूते पर कोई व्यक्ति अभियांत्रिकी वृत्ति में टिका रहे चाहे उसका नैसर्गिक झुकाव इंजीनियरिंग के प्रति नहीं भी हो, चाहे वह अपने लगातार ज्ञानवर्धन का प्रयास न करे, चाहे वह अपनी प्रोफ़ेशनल इंटीग्रिटी का यथोचित ध्यान भी न रखे । इसलिये समाज में यह व्यवस्था पनपना भी आवश्यक है कि केवल डिग्री या डिप्लोमा के आधार पर कोई व्यक्ति अभियांत्रिकी वृत्ति में टिका न रह सके और वांछित कार्य परिणाम न देने वाले व्यक्ति चिन्हित किये जा सकें।
भारत शीघ्रताशीघ्र विकसित देशों की श्रेणी में आवे इसके लिये यह आवश्यक है कि समाज अपने अभियंताओं की प्रतिभा का भरपूर उपयोग करे व अभियंताओं का भी यह कर्तव्य बनता है कि वे अपनी प्रतिभा का पूरा पूरा उपयोग करें, अपने ज्ञान को अद्यतन (अपडेटेड) रखें और अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह पूरी जिम्मेदारी के साथ करें ताकि उनके द्वारा निर्देशित कार्य अपनी एक विशिष्ट झलक दें और निर्धारित मापदंडों पर खरे उतरें।
-ज्ञान प्रकाश सोनी
एम. ई.(ऑनर्स)
सर नमस्कार,
१५ सप्टेंबरला अभियंतादिनाच्या निमित्ताने सा. लोकवाहीनी सर्वांगसुंदर विशेषांक दरवर्षी प्रकाशित करत असते. यावर्षी सुध्दा १५ सप्टेंबर २०१६अभियंतादिनी प्रकाशित होणार आहे. या विशेषांकात अभियांत्रिकी संबंधीची माहीती राहणार असून देशांतील विकासात अभियंत्याचे दायित्व किंवा आपणास अभियंता यावरील विषय योग्य वाटेल त्यावर आपण लेख पाठवावा, हि विनंती.
प्रवीण महाजन, संपादक
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